Saturday 21 November 2015

प्रधानमंत्री के दूसरी हरित क्रांति को झटका दे रही है मनोहर सरकार

-‘राष्ट्रीय मृदा स्वास्थ्य कार्ड’ योजना में रोड़ा है कर्मचारियों की कमी
-खेतों की उर्वरकता और पैदावार बढ़ाने के लिए जरूरी है मृदा परीक्षण
-जिला मृदा परीक्षण विभाग में नहीं है कोई अधिकारी व कर्मचारी

शाहनवाज आलम
गुड़गांव। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूसरी हरित क्रांति के सपने को मुख्यमंत्री मनोहर लाल झटका दे रहे हैं। खेतों की उर्वरकता बढ़ाने के लिए प्रधानमंत्री ने 19 फरवरी को राजस्थान से ‘राष्ट्रीय मृदा स्वास्थ्य कार्ड’ की शुरुआत की थी, लेकिन उनकी पार्टी की ही मनोहर सरकार इस मुद्दे पर गंभीर नहीं दिख रही है। हरित क्रांति वाले इस प्रदेश में अब तक मृदा परीक्षण का काम कागजों तक सीमित है।
राष्ट्रीय स्तर पर इस अभियान की शुरुआत होने के बाद हरियाणा सरकार ने फसल की बुआई से पहले खेतों की ‘मृदा स्वास्थ्य कार्ड’ बनाना अनिवार्य किया था, लेकिन कर्मचारियों की कमी प्रधानमंत्री की दूसरी हरित क्रांति की राह में रोड़ा बनी हुई है। कृषि विभाग के 24 कृषि सहायक अधिकारी (एडीओ) खेतों के मिट्टी के नमूने ले रहे हैं, लेकिन उनका परीक्षण करने वाला कोई नहीं है। कृषि विभाग के मृदा परीक्षण विभाग के सभी पद खाली हैं। जिससे मिट्टी के सैंपल ‘मिट्टी’ में मिल रहे हैं। बिना अधिकारी और कर्मचारी के किसानों को मिट्टी में मौजूद तत्व और उसकी उर्वरक क्षमता के बारे में जानना भी बेमानी है।
क्यों किया गया यह जरूरी
हरित क्रांति में पंजाब और हरियाणा के रुतबा को देखते हुए केंद्रीय कृषि मंत्रालय की नजर सबसे ज्यादा इन दोनों प्रदेशों पर है। बीते सालों में रसायनिक खादों के अंधाधुंध प्रयोग होने की वजह से मिट्टी की उर्वरता प्रभावित हुई है। जिसका असर खेतों की उत्पादक क्षमता पर हो रहा है। हर 25 एकड़ पर चार नमूना लेना है। अंधाधुंध हो रहे रसायनिक खाद के प्रयोग पर विराम लगाते हुए जितनी जरूरत हो, उतनी खाद खेतों में दी जाए।
आधुनिक मशीन की भी कमी
जिला मृदा परीक्षण केंद्र शहर के बीचोंबीच स्थित है। जिसकी वजह से दूर से आने वाले किसानों को दिक्कत होती है। विभाग के पास मोबाइल स्वाइल टेस्टिंग लैब नहीं है। जिसकी वजह से दूर कहीं जाकर कैंप लगाना मुश्किल है। जिला मृदा परीक्षण विभाग के पास परमाणु अवशोषण स्पेक्ट्रोफोटोमीटर (एएएस) मशीन है। हरियाणा कृषि यूनिवर्सिटी के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. एमपी श्रीवास्तव कहते हैं इस तकनीक से परीक्षण के लिए लगने वाली फिल्टर ही महंगी है। हर दिन मिट्टी के दो दर्जन से अधिक परीक्षण करने में असफल हैं। जबकि अधिक नमूनेेऔर अच्छे विश्लेशण के लिए इंडक्टीव कपल प्लाज्मा स्पेक्ट्रोमीटर जरूरी है। जिसमें एक साथ ऑटोमैटिक 250 सैंपल एक बार में विश्लेषण किये जा सकते हैं।
क्या है अभी स्थिति 
हरियाणा के खेतों में जिंक 24 फीसदी, आयरन 31 फीसदी और मैगभनीज 5.20 फीसदी कम है। गुड़गांव और मेवात के इलाके में नाइट्रोजन और फासफोरस बहुत ही कम है। कृषि विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोजेक्ट निदेशक डॉ. आरएस बल्यान कहते हैं कि नाइट्रोजन के अभाव में फसलों को जरूरी पोषक तत्व नहीं मिल पाते हैं। जिससे पौधों के मरने का डर बना रहता है। इस वजह से इन इलाकों में सूखा का असर जल्दी होता है।
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विभाग के पास कर्मचारियों की कमी के बारे में कृषि निदेशालय को लिखा गया है। मिट्टी के नमूने लेने के बाद इसकी जांच के लिए निदेशालय को लिखा जाएगा। वहां से दिशा-निर्देश के बाद कुछ इंतजाम किए जाएंगे।
-पीएस सभरवाल, कृषि उपनिदेशक

Sunday 7 August 2011

करीब 15 हजार छात्र किताबों से महरुम

-मिडिल स्कूलों में अभी तक नहीं बांटी किताबें
-किताबें नहीं मिलने से हो रही शिक्षा प्रभावित
-अगले माह होगी फस्र्ट सेमेस्टर की परीक्षा

फरीदाबाद। सर्व शिक्षा अभियान के तहत सरकारी स्कूलों के मिडिल क्लास के छात्र-छात्राओं को दिए जाने वाले किताबें अभी तक नहीं मिल पाई है। गरीब बच्चों को स्कूलों से जोडऩे व बेहतर तालीम मुहैया कराने में शिक्षा महकमा कतई गंभीर नहीं है। क्लास छठी से आठवीं तक के छात्र-छात्राओं को अभी तक नि:शुल्क किताबें नहीं मिलने से छात्र-छात्राओं की शिक्षा पूरी तरह प्रभावित हो रही है।
दरअसल, जिले के 130 सरकारी स्कूलों में पहली से छठी कक्षा तक आठवीं तक करीब 15 हजार बच्चे पढ़ रहे हैं। हैरत की बात है, सर्व शिक्षा अभियान के तहत करोड़ों रुपए खर्च होने के बावजूद इन्हें समय पर नि:शुल्क पुस्तकें नहीं मिल ही रही हैं। हालांकि राज्य सरकार ने गुणवत्तापरक शिक्षा को पाठ्यक्रम सीबीएसई पैटर्न की तर्ज पर शुरू किया। इसके तहत अप्रैल में नया सत्र शुरू करने और छात्र-छात्राओं को मुफ्त किताबें देने का प्रावधान भी बना। मगर अफसोस, अगस्त तक स्कूलों में पूरी किताबें नहीं पहुंची हैं। कुछ स्कूलों में एक या दो सेट किताबें पहुंची है तो कुछ स्कूलों में आधी अधूरी ही किताबें छात्र-छात्राओं को मिली है, जबकि दूर-दराज के इलाकों में छात्र-छात्राएं किताबों से अभी तक महरुम हैं। जिला शिक्षा विभाग यातायात की असुविधा की वजह मान रहा है। स्कूलों से मिली जानकारी के अनुसार, किताबों के लिए कई बार जिला शिक्षा अधिकारी और जिला परियोजना समन्वयक को लिखित सूचना दी गई, लेकिन शिक्षा महकमा परिवहन की असुविधा की बात कहकर हाथ खड़े कर दिए।
खास बात यह है कि छठी से आठवीं की छात्र-छात्राओं की परीक्षा सितंबर के पहले सप्ताह में होगी। किताबों की गैर मौजूदगी में छात्र-छात्राओं के लिए परीक्षा की तैयारी करना मुश्किल हो रहा है। किताब न होने के कारण स्कूलों में भी पढ़ाई बाधित हो रही है। कुछ स्कूलों में जैसे-तैसे पुरानी पुस्तकों से काम चलाया जा रहा है। चूंकि पुरानी किताबों की हालत जर्जर है। विशेषकर शुरू के आखरी पाठ मौजूद नहीं होने की समस्या के चलते भी विद्यार्थियों को परेशानी हो रही है। मुफ्त किताब के आस में अभिभावक भी बाजार से किताब दिलाने में दिलचस्पी नहीं ले रहे है। बाजार में हरियाणा विद्यालय शिक्षण बोर्ड की किताबें मौजूद नहीं है। दुकानदार भी सरकारी किताबों में लाभ न होने के कारण निजी किताबों को ज्यादा प्रोत्साहन दे रहे है।
राजेंद्र कुमार, जिला प्रधान, हरियाणा राजकीय अध्यापक संघ : सरकार शिक्षा को लेकर गंभीर नहीं है। एक तरफ बायोमैट्रिक मशीन लगाकर शिक्षकों पर नकेल कसने की कोशिश कर रही है तो दूसरी तरफ पढऩे-पढ़ाने के लिए जरुरतमंद छात्र-छात्राओं को किताबें मुहैया नहीं करा रही है। किताबें न होने से बच्चे पढ़ाई पर पूरी तरह ध्यान नहीं दे रहे है। जबकि अगले माह में बच्चों की परीक्षा होनी हैं। बच्चे के फेल होने पर टीचर्स को ही दोष दिया जाएंगा।
राजीव कुमार, जिला शिक्षा अधिकारी : आवागमन की असुविधा के कारण कुछ स्कूलों में किताबें नहीं पहुंच पाई है। सोमवार को डीसी साहब से बात करके यातायात उन स्कूलों में किताबों पहुचाई जाएंगी जहां अभी तक किताबें छात्र-छात्राओं को नहीं मिल पाई है। छात्र-छात्राआें की पढ़ाई बाधित न हो, इसके लिए स्कूलों के प्रिसिंपल को अप्रैल में बच्चों से पुराने किताब लेकर नए छात्र-छात्राओं को दी जाने की आदेश दी गई थी।
---------मो. शाहनवाज

रिस्ट बैंड बांधकर युवाओं ने बोला हैप्पी फ्रैंडशिप डे

फरीदाबाद। हमें तन्हाई का कोई साथी चाहिए, खुशियों का कोई राजदार चाहिए और गलती पर प्यार से डांटने-फटकारने वाला चाहिए। यदि यह सब खूबी किसी एक व्यक्ति में मिले तो नि:संदेह ही वह आपका दोस्त होगा। एेसी तलाश पूरी होने के बाद रविवार को फ्रेंडशिप डे पर युवाओं ने दोस्ती के नए रिश्ते जोड़े। इसी खुशी में रात से नौजवानों ने अपने दोस्तों को एसएमएस और कॉल्स से बधाईयां देना शुरू कर दी थीं। रात में ही दोस्तों ने एक दूसरे को -कार्ड और ऑरकुट फेसबुक के जरिए संदेश भेजें।
सुबह-सवेरे से ही युवाओं में फ्रैंडशिप डे को लेकर खुमार छा गया था। युवा-युवतियों ने एक-दूसरे को गिफ्ट देकर, रिस्ट बैंड बांधकर हैप्पी फ्रैंडशिप की बधाईयां दी। बहुत से नौजवानों ने अपने दोस्तों को फैंडशिप गिफ्ट देने के लिए कई तरह के हथकंडे अपनाएं। शहर के युवा-युवतियों ने अपने दोस्तों को फस्र्ट डे ऑफ फ्रेंडशिप की तस्वीर को गिफ्ट के रुप में दिए। कई दोस्तों ने उसके साथ बिताए पल के सभी तस्वीरों को एक एलबम में संजोकर भेंट किया। कुछ युवाओं ने अपने दोस्तों के फेवरेट गानों को एक सीडी में कंपोज कराकर दिए तो कुछ ने अपने दोस्तों के लिए सरप्राइज डिनर पार्टी का भी आयोजन किया। कई युवाओं ने अपने दोस्तों को आकर्षित करने के लिए अपने हाथ के बने भावनात्मक कार्ड गिफ्ट किए।
मॉल्स में रही गहमागहमी : छुट्टी के दिन फ्रैंडशिप डे होने के कारण शहर के मॉल्स में काफी गहमागहमी रही। नौजवान और किशोर अपने दोस्तों के साथ शॉपिंग करने के लिए मॉल्स पहुंचें। कॉफी शॉप और रेस्टूरेंट में भी युवाओं की भीड़ रही। सिनेमा हॉल के टिकट काउंटर पर फिल्म देखने के लिए भी युवाओं का जमघट लगा रहा।
पार्कों में भी रही भीड़ : रविवार को फैंडशिप डे की वजह शहर के पार्काें में नौजवानों की भीड़ रही। नौजवानों ने अपने दोस्तों को फूल देकर भी फ्रैंडशिप दी की बधाईयां दी। कुछ ने फूल के बुके देकर अपनों दोस्तों के प्रति अपनी मोहब्बत का इजहार किया। पार्काें में झूले पर दोस्त एक दूसरे को झूलाते और मस्ती करते नजर आएं।

फ्रैंडशिप के दिन बाजारों में मांग

फ्रैंडशिप बैंड : फ्रैंडशिप डे का प्रतीक माने जाने वाली फ्रैंडशिप बैंड की मांग भी बाजार में खूब रही। छोटे बच्चों से लेकर युवतियों में इसकी जबरदस्त मांग रही। बाजार में पांच रुपए से 50 रुपए तक के बैंड उपलब्ध थे। छोटे बच्चों ने भी उत्साह से अपने दोस्तों के साथ रिस्ट बैंड बांधकर मित्रता दिवस मनाया।
ग्रीटिंग कार्ड : रविवार को मॉल्स और बाजार में फ्रेंडशिप डे को लेकर कई तरह के ग्रीटिंग कार्ड खूब बिके। सभी गिफ्ट स्टोर में बेहतरीन स्लोगन लिखे कार्ड लेने के लिए युवा-युवतियों की काफी भीड़ रही। इसके अलावा म्यूजिक वाले फ्रेंडशिप कार्ड भी शहर के मॉल्स और बाजार के स्टोरों से खरीदकर युवाओं ने एक-दूसरे को गिफ्ट दिए। बाजार में ग्रीटिंग कार्ड की कीमत 30 रुपए से 500 रुपए तक हैं।
फ्रैंडशिप रिंग : जहां एक आेर कई युवा फ्रेंडशिप बैंड, तरह-तरह के गिफ्ट ग्रीटिंग कार्ड की खरीद कर रहे हैं, वहीं कई युवा खास तौर पर रिंग पर ध्यान आकर्षित कर रहे हैं। करीब 30 से लेकर 50 रुपए तक की रिंग जरकिन (अमेरिकन डायमंड) से जड़ी होने के कारण स्टाइलिस्ट लगती है। इसकी डिजाइन ही इसकी खूबसूरती बयां करता है। मेटल की बनी होने के साथ-साथ ये रिंग हाथ में पहनने के बाद किसी डायमंड रिंग से कम नहीं लगती है। इन रिंग्स में कई प्रकार के डिजाइन रंग उपलब्ध हैं। वहीं युवतियों को ज्यादातर सिल्वर कलर की रिंग लुभा रही है।

युवा-युवतियों की प्रतिक्रिया

प्रियंका : किसी के भी हाथ में एक बेल्ट बांध दिया और हो गई दोस्ती पक्की, बन गए फ्रेंड्स। पर वास्तव में यह एक झूठ है जो कुछेक पल के लिए अपने दिल को तसल्ली तो दे सकता है, लेकिन वास्तव में आपको उस गहरी दोस्ती का अहसास नहीं कराता। एेसा नहीं है दोस्ती वह हो जो चाहे एक दिन पहले, एक साल पहले या कई वर्षाें पहले की हो। दोस्तों के लिए साथ शाम में फिल्म देखने की योजना है।
स्वाति राजपूत : दोस्ती वह है जो हर समय और हर सुख-दुख में आपका खयाल रखें। चाहे सुख हो दुख, हर पहलू में वह सामने वाले को एक ही नजर से देखें, उसमें परखने की, या फिर इस उम्मीद कि मैंने तो उसकी दुख में मदद की थी, लेकिन जब आज मैं दुख से गुजर रहा हूं तब वहीं दोस्त मेरे काम नहीं आया। एेसी कोई भी भावना दोस्ती के आड़े नहीं आनी चाहिए। आज मेरे कई दोस्तों ने सुबह से ही कॉल करके मुझे बधाईयां दी।
नुपूर मंगला : दोस्ती वह जिसमें आप अपने दोस्तों के प्रति पूरी तरह समर्पित हो। यह बात सिर्फ किसी भी सहायता के लिए नहीं है। दोस्ती से मतलब यह कहीं नहीं निकलता कि सालों पहले की गई दोस्ती ही फ्रेंडशिप कहलाती है। आज मैंने अपने बेस्ट फ्रेंड के लिए ग्रीटिंग कार्ड खरीदी है और सरप्राइज देने के लिए घर जा रही हूं।
कौशल कुमार : स्कूल-कॉलेज हो या ऑफिस लाइफ हो दोस्ती का रिश्ता बहुत मजबूत होता है। दोस्ती कभी भी एेसा हो जो जरा-सी भूल से आपकी दोस्ती के बीच दरार जाए। दोस्ती का यह रिश्ता इतना गहरा हो कि चाहे उसमें लोग कमल खिलाएं या कांटे उगाएं। मैंने अपने दोस्तों को फैंडशिप डे के मौके पर आज रात घर पर डिनर के लिए आमंत्रित किया है। सबको छोटा सा गिफ्ट देने का भी सोच रही हूं।
सिया सिंह : हम दोस्तों से अपना दुख-सुख सब शेयर कर लेते हैं। वो तमाम बातें भी शेयर करते हैं जिसके बारे में अपने परिवार वालों को भी नहीं बता पाते। अगर परिवारवाले गुस्सा होते हैं तो मैं अपने दोस्त के पास चली जाती हूं। एेसे तो कई दोस्त है लेकिन कुछ दोस्त मुझे ज्यादा पसंद है, क्योंकि वे मुझे हर समय हेल्प करते हैं। आज मैंने अपने सभी फ्रेंड के लिए रिंग भेंट किया हैं।
अंकिता पांडे : वैसे तो हमारी जिंदगी में सभी की अहमियत होती है लेकिन दोस्त जितना ज्यादा अहम होता है उस जगह को शायद ही कोई ले सकता है। दोस्तों के साथ नोक-झोंक, हंसी-मजाक सबकुछ होता रहता है। एक दोस्त में मैं भाई-बहन सब देखती हूं। कॉलेज में काफी सारी नई दोस्त बन गई है। पहले से भी कई बेस्ट फ्रैंड हैं। दोस्तों के लिए घर पर सभी दोस्तों ने मिलकर गेट-टू-गेदर होने की योजना बनाई हैं।

-------मो. शाहनवाज



Wednesday 3 August 2011

वैदिक परंपरा को निर्वहन करता इंद्रपस्थ गुरुकुल

फरीदाबाद। औद्योगिक नगरी का कोई मुकाबला नहीं। अगर, बात आधुनिकता की हो, तो भी इस शहर का कोई सानी नहीं है। फिर, बात जब परंपरा की हो, तो आप कल्पना भी नहीं करेंगे कि यहां आजादी के जमाने के वैदिक परंपरा की गुरुकुल भी चल रहा है। जी हां, चौंकिए मत! शहर में आज भी गुरुकुल परंपरा संजोई जा रही है, जहां छात्रों को धोती-कुर्ता, चोटी और जनेऊ के साथ देखा जा सकता हैं।
स्वामी श्रद्धानंद का इंद्रप्रस्थ गुरुकुल आज भी वैदिक परंपरा का निर्वहन कर हा है। गुरुकुल में आर्य समाज के मूल्यों को अपनाकर बच्चों को नैतिक, वैदिक, बौद्धिक और आत्मबल के साथ व्यवहारिक शिक्षा दी जा रही है। इसकी स्थापना 196 में स्वामी श्रद्धानंद ने भारतीयों को वैदिक शिक्षा देने के उद्देश्य से की थी। यहां कक्षा पांचवीं से बीए शास्त्री तक की पढ़ाई होती है लेकिन यह अन्य स्कूल-कॉलेजों से पूरी तरह अलग है। कल का गुरुकुल आज के आधुनिक कॉलेजों या स्कूलों से पीछे नहीं है। यहां हर तरह की सुविधा मौजूद है। गुरुकुल का प्रबंधन आर्य प्रतिनिधि सभा रोहतक द्वारा की जाती है।
बच्चों को परंपराआें से जोडऩे की पहल : गुरुकुल में वैदिक परंपराओं की शिक्षा के साथ कंप्यूटर और अंग्रेजी की भी ज्ञान दी जा रही है। इसके अलावा संस्कृत भी बच्चों को सिखाया जाता है। यहां छात्रों को भोजन भी दी जाती है और उन्हें संस्कृति एवं संस्कार की शिक्षा प्रदान की जाती है। गुरुकुल प्रबंधन की मानें, तो यहां ज्यादातर शिक्षार्थी मध्यम वर्ग के तअल्लुक रखते हैं। बच्चों को यहां शिक्षित करने के पीछे उनका मानना है कि आजकल लोग मुख्य शिक्षा के साथ आने वाली पीढ़ी में परंपराआें, संस्कारों का भी मिश्रण चाहते हैं। खास बात यह है कि इस गुरुकुल में दस साल से लेकर 19 साल तक के बच्चों को ही प्रवेश दिया जाता है। छात्रा को प्रवेश नहीं दी जाती है। गुरुकुल प्रबंधन की मानें तो प्रत्येक बच्चों पर प्रति वर्ष 24000 रुपए खर्च की जाती है और छात्रों से किसी तरह की फीस नहीं ली जाती है। बच्चों की दिनचर्या सुबह चार बजे से ही शुरू हो जाती है। सुबह जागरण और मंत्रोच्चारण के साथ दिन की शुरूआत होती है। व्यायाम करने के बिना छात्रों को कक्षा में आने नहीं दी जाती है। सुबह नौ से शाम चार बजे तक कक्षाएं लगती है। सांस्कृतिक कार्यक्रम के लिए गुरुकुल के छात्रों को ही तैयार किया जाता है।
गुरु-शिष्य परंपरा के साथ नियम-संयम भी : यहां गुरु-शिष्य परंपरा के साथ-साथ अन्य नियम-संयम पर भी ध्यान दिया जाता है, जिनमें भोजन करना, संस्कृत एवं वैदिक अध्ययन, विद्युत इस्तेमाल टेलीविजन देखने से बचने आदि की सलाह शामिल है। इसके पीछे तर्क यह है कि यदि आने वाली पीढ़ी को भौतिक संसाधनों और विलासिता पूर्ण सामग्री की उपलब्धता नहीं भी हो, तो भी उनकी जीवन शैली प्रभावित नहीं हो। वैदिक परंपरा को आगे बढ़ाते हुए गुरुकुल में प्रवेश शुल्क निर्धारित नहीं है। पूरा गुरुकुल प्रबंधन दान दाताआें की दान राशि से संचालित होता है। प्रवेश शुल्क की जगह यहां अभिभावकों को दान के लिए प्रेरित किया जाता है। कक्षा में शिक्षक भी धोती-कुर्ता पहन कर आते है।
योग और कंप्यूटर के साथ देशभक्ति भी सीखते हैं बच्चे : गुरुकुल में बीए शास्त्री तक के करीब 80 बच्चों को वैदिक गणित, कंप्यूटर, अंग्रेजी, संस्कृत, योगा और कुस्ती आदि की शिक्षा दी जाती है। कक्षाआें को ग्रेड (श्रेणी) के आधार पर बांटा गया है, जिसमें विवेक (इंटेलिजेंस), विनय (रिस्पेक्ट) और सिद्घांत (प्रिंसिपल) शामिल हैं। छात्रों को जमीन पर टाट बिछाकर पढ़ाया जाता है।
शहीद स्मृति संग्रहालय भी : गुरुकुल में भूमिगत अमर शहीद स्मृति संग्रहालय भी है। जहां स्वतंत्रता सेनानियों ने अंग्रेजों के खिलाफ भारत छोड़ो के लिए रणनीति बनाई थी। इसके द्वारा नए पीढ़ी के छात्रों को देश प्रेम की भावना और हंसते-हंसते बलिदानियों की तरह फांसी पर चढऩे के लिए प्रेरित की जाती है।

गुरुकुल एक नजर
स्थापना : 1916
संस्थापक : स्वामी श्रद्धानंद
क्षेत्रफल : 216 एकड़
कक्षा : पांचवीं से बीए शास्त्री
छात्र : 80
कंप्यूटर : चार
पुस्तकालय : एक

-----मो. शाहनवाज

सरकारी स्कूलों में एजुसेट सिस्टम फेल

फरीदाबाद। प्रदेश सरकार की शिक्षा के क्षेत्र में गुणवत्ता लाने की महत्वाकांक्षी योजना एजुसेट पूरे जिला में पूरी तरह ठप हो चुका है। स्कूलों में लगे डीटीएच भी लंबें अर्से से काम नहीं कर रहा हैं। यूपीएस की बैटरी खत्म होने और ज्यादा पावर कट के कारण कंप्यूटर लैब, प्रोजेक्टर, कंप्यूटर और टेली कांफ्रेसिंग सिस्टम डिब्बाबंद साबित हो रहा है। 2010 से एजुसेट और डीटीएच सिस्टम पूरी तरह ठप है। गौरतलब है कि प्रदेश सरकार ने शिक्षा के स्तर में सुधार के लिए 2005 में सभी प्राथमिक, मिडिल, उच्च और वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालयों में डीटीएच टीवी लगवाए थे, जिन पर विभिन्न कक्षाआें के विद्यार्थियों के लिए शैक्षिक प्रसारण किया जाता था। इसके लिए विशेषज्ञ शिक्षकों की भी सेवाएं ली जाती थी।
जिला के सभी स्कूलों में एजुसेट सिस्टम लगाए हुए हैं, लेकिन सभी स्कूलों में एजुसेट सिस्टम काम नहीं कर रहे हैं, क्योंकि डीटीएच के साथ लगाई गई यूपीएस बैट्रियां खराब हो चुकी हैं। विभिन्न स्कूलों में प्रधानाचार्य ने बताया कि बैट्री खराब हो चुकी हैं और इस संबंध में स्कूल प्रशासन ने निदेशालय को कई बार सूचित किया जा चुका है, लेकिन नई बैट्री नहीं लगाए जाने से प्रसारण बाधित हो रहा है।
स्कूल प्राध्यपकों का मानना है कि एजुसेट प्रसारण विद्यार्थियों के लिए उपयोगी साबित हो रहा था, लेकिन प्रसारण ब्रेक हो जाने के कारण छात्र-छात्राओं को खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। छात्र-छात्राएं भी पढऩे के ललक से ज्यादा आने लगी थी। गौरतलब है कि सरकार ने अबाध रुप से प्रसारण के लिए स्कूलों में डीटीएच के साथ यूपीएस भी लगवाए थे ताकि पावर कट के दौरान भी एजुसेट सिस्टम काम करता रहे और विद्यार्थी उनके लिए आने वाले कार्यक्रम से वंचि न हों।
पिछले एक साल से किसी भी स्कूल में एजुसेट का इस्तेमाल नहीं हुआ है जबकि हरियाणा के सरकारी स्कूलों में आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करते हुए एजुसेट लगाए गए थे ताकि विशे विशेषज्ञों का डीटीएच (उपग्रह के माध्यम) से सीधा व्याख्यान छात्र-छात्राओं तक पहुंचाया जा सके। विज्ञान के छात्रों के लिए चंडीगढ़ स्टूडियो से सीधा व्याख्यान का प्रसार किया जाता था। इस सिस्टम में छात्र-छात्राओं को विषय विशेषज्ञों से सीधे सवाल-जवाब करने की भी व्यवस्था थी। यह प्रयास विद्यार्थियों में न केवल लोकप्रिय हुआ बल्कि विज्ञान के विद्यार्थियों को इससे लाभ भी मिलने लगा, इसके परिणाम देखकर शिक्षा विभाग ने ब्लॉक व जिला शिक्षा अधिकारी के कार्यालय को सीधा निदेशालय से जोड़ दिया था लेकिन चार साल में इसने दम तोड़ दिया। आज यह स्थिति है कि के 4२ स्कूलों मे न तो एजुसेट काम कर रहा है, न ही डीटीएच। एजुसेट के उपकरण छतों पर रखे हैं व अन्य सामान अलमारियों में बंद पड़ा है।
क्या है एजुसेट : एजुसेट सेटेलाइट पहली भारतीय सेटेलाइट है, जिसे विशेष रुप से शिक्षा क्षेत्र में प्रयोग के लिए अंतरिक्ष में छोड़ा गया था। 2१ सितंबर 2004 को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने श्रीहरिकोटा से 19५0 किलोग्राम भारी उपग्रह को सफल उड़ान भरी थी। डिस्टेंस एजुकेशन सिस्टम को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए इसे छोड़ा गया था। मुख्य रूप से यह सेटेलाइट अन्य देशों से शिक्षा से जुड़ी जानकारियों का आदान प्रदान करती है।
राजीव कुमार, जिला शिक्षा अधिकारी : जिला के सभी स्कूलों में बैट्रियों की लाइफ खत्म हो जाने के कारण एजुसेट और सिस्टम ठप पड़ गया है। नई बैट्रियां खरीदने के लिए चंडीगढ़ निदेशालय को पत्र लिख दिया गया है। निदेशालय के उच्च क्रय समिति ने आश्वासन दिया है कि इस माह में यूपीए के लिए बैट्रियां खरीद कर स्कूलों को आवंटित कर दी जाएंगी। साथ ही जिला के लिए एजुसेट इंजीनियर की नियुक्ति कर दी गई है।
सुशील कन्वा, प्रांतीय उपाध्यक्ष, हरियाणा स्कूल लेक्चर्स एसोसिएशन : स्कूलों में एजुसेट और डीटीएच के जरिए शिक्षा में क्वालिटी लाने के लिए गंभीर नहीं है। शिक्षकों के कारण ही अब तक एजुसेट कुछ फीसदी सफल हो पाया था। लेकिन तकनीकी खामियों को दूर करने के लिए ब्लॉक स्तर पर इंजीनियर भी नहीं है। जिससे एजुसेट योजना को काफी धक्का लगा है।
डॉ. धर्मदेव शर्मा, प्रधानाचार्य, गर्वमेंट सीनियर सेकेंडरी स्कूल, ओल्ड फरीदाबाद : एजुसेट सिस्टम पूरी तरह बंद है। जिसके कारण एजुसेट शिक्षा का फायदा छात्र-छात्राओं को नहीं हो रहा है। तकनीकी खामियों को दूर के लिए जिला शिक्षा विभाग से इंजीनियर आता है लेकिन बैट्री की खराबी बता कर हाजिरी लगाकर चला जाता है। नई बैट्री के लिए जिला शिक्षा विभाग को कई बार पत्र लिखा गया है लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई है।
----------मो. शाहनवाज

Tuesday 26 July 2011

ऑफर से गुलजार हुआ मॉल्स और बाजार

मानसून शुरू होते ही शहर के परंपरागत बाजारों और मॉल्स में खरीदारों की संख्या कम हो गई हैं। वहीं दुकानदार ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए सेल की तैयारी में जुट गए हैं। 20 फीसदी, 50 फीसदी, 80 फीसदी सेल जिधर देखो इन दिनों इस तरह के बोर्ड शहर के मॉल्स और बाजारों में आपको दिखाई पड़ेंगे। खास बात ये है कि ऑफर्स कपड़े, फूट वियर, इलेक्ट्रॉनिक गजेट, प्रीमियम और लक्जरी ब्रांड के प्रोडक्ट पर मिल रहे हैं। सेल में लगभग सभी ब्रांड्स ग्राहकों को लुभाने के लिए शानदार ऑफर्स दे रहे हैं। कॉटन कंट्री, पीटर इंग्लैंड, जॉन प्लेयर, रिबॉक, मोन्टे कार्लो आदि ब्रांडेड कपड़ों, शूज आदि पर भी मॉल्स में छूट दिए जा रहे है।
फ्यूचर ग्रुप की कंपनी पैंटालून्स भी लुभावने ऑफर्स लेकर बाजार में उतरी है। पैंटालून्स में खरीदारी रने पर 50 फीसदी तक की छूट मिल रही है। वहीं लाइफस्टाइल ग्रूप की कंपनी मैक्स भी इन दिनों खरीदारी पर 25-50 फीसदी तक की छूट दे रही है। फैशन ब्रांड लिवाइस पर 40 फीसदी तक की टूट मिल रही है। इसके अलावा स्पोर्ट वियर एडीडास 40 फीसदी और रिबॉक में 50 फीसदी तक डिस्काउंट दे रहे हैं। कंपनियों को इन छूट की मदद से अपनी बिक्री में 25 फीसदी तक की बढ़ोतरी की उम्मीद है। प्रीमियम और सेमी प्रीमियम ब्रांड पर भी अच्छा डिस्काउंट मिल रहा है जिसमें खरीदारी का फायदा उठाया जा सकता है।
बैग और जूते के लिए मशहूर नाइनवेक्स में खरीदारी करने पर 25 से 30 फीसदी तक की टूट मिल रही है। लग्जरी ब्रांड्स पर सेल कम ही लगती है लेकिन बैग, कोट्स और शूज के लिए मशहूर यूके का ब्रांड बरबरी पर मिल रहा है 30 फीसदी तक का डिस्काउंट। जारा भी इस मानसून सीजन में सेल लगा कर खरीदारों को लुभा रहा है।
दुकानदारों का कहना है कि इस बार मानसून ने समय से पहले शहर में दस्तक दे दी है, इसलिए सेल का सिलसिला भी समय से पहले शुरू गया है। हर साल मानसून शुरू होते ही गर्मियों के कपड़ें को सस्ते दामों में निबटाने के लिए दुकानदार समर सेल रखते हैं। लोग भी समर सेल का बेसब्री से इंतजार करते हैं। गर्मियों के मौसम में लोग काटन के कपडे़ सबसे ज्यादा पसंद करते हैं। इसलिए 20 से 50 फीसदी तक छूट दी जा रही है। सेल में ज्यादातर बिक्री काटन के कपड़ों की हो रही है। महिलाओं के कपड़ों में भी 50-0 फीसदी छूट है। माल में कपड़े के शोरूम मैनेजर संजय ने बताया कि इन दिनों मॉल्स में कॉलेज गोइंग स्टूडेंट्स ज्यादा रहे हैं। इसलिए माल्स के कई शोरूम्स में समर सेल लगनी शुरू हो गई है, ताकि युवाओं को खरीदारी के लिए आकर्षित किया जा सके।
इलेक्ट्रॉनिक गजेट में छूट की वजह इलेक्ट्रॉनिक्स मार्केट गुलजार हो गया है। छूट के बाद इलेक्ट्रनिक्स मार्केट में 10 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। ऑफर के तहत इंस्टॉलेशन चार्ज में ग्राहकों को छूट दी।
वीआईपी इंडस्ट्रीज नेएंड ऑफ सीजन सेलकी आकर्षक पेशकश की है। इसके जरिए ग्राहकों को टिकाऊ लगेज किफायती दाम पर उपलब्ध होंगे। सेल में ट्रॉली बैग्स, डफेल्स, डफेल ट्रॉलीज एवं बैकपैक्स पर 40 प्रतिशत की टूट दी गई है। यह अफर 28 अगस्त तक रहेगा। ऑफर की वैधता स्टॉक्स आपूर्ति तक जारी रहेगी।
------मो. शाहनवाज

मानसूनी फैशन से गुलजार हैं बाजार

मानसून के दस्तक के साथ ही युवाओं को लुभाने के लिए बाजारों और मॉल्स ने पूरी तैयारी कर रखी है। मार्केट में मानसून की चीजें नजर आने लगी हैं। इनमें रेनकोट से लेकर छाता और वटरप्रूफ वचेज, डे्रस, स्लीपर तमाम चीजें शामिल हैं। मानसून आते ही मार्केट में इससे जुड़े आइटम्स की भरमार हो जाती है। यही वजह है कि आजकल बाजार मानसून से जुड़ी चीजों से भरा पड़ा है। इसलिए इसमें ढेर सारी वैराइटी मिल जाएंगी।
स्टाइलिश रेनकोट : बच्चे हो या बड़े सभी बारिश का मजा लेना चाहते हैं और भीगना भी नहीं चाहते हैं। साथ ही स्टाइल भी बरकरार रखने की कोशिश सभी की होती है। ऐसे में रेनकोट आपके पास एक अच्छा विकल्प है। जी हां, मानसून आते ही मार्केट में सबसे ज्यादा वैराइटी रेनकोट की ही नजर आती है। ये आपको हर डिजाइन प्रिंट के मिल जाएंगे। इनमें प्लेन, फ्लावर प्रिंट, कार्टून प्रिंट, पॉकेट वाले सहित कई साइज और डिजाइन में शामिल हैं। दरअसल, अब रेनकोट का मतलब भीगने से बचना नहीं, बल्कि स्टाइलिश दिखने के साथ बारिश का मजा लेना भी है। यही वजह है कि रेनकोट तमाम वैराइटी में मौजूद हैं। जहां प्लेन रेनकोट की कीमत 200 रुपये से शुरू होती है। वहीं, प्रिंटेड रेनकोट 350 रुपये में मिल जाएंगे। पकेट वाले रेनकोट 400 रुपये, शाइनी रेनकोट 450 रुपये और हैवी फैब्रिक वाले आपको 500 रुपये में मिल जाएंगे। जबकि कार्टून कैरेक्टर बने बच्चों के रेनकोट की कीमत 150 रुपये से शुरू है।
अगर कलर की बात की जाए, तो बाजार में हर कलर के रेनकोट मिल जाएंगे। इनमें पीला, लाल, काला, ब्राउन, पिंक, ब्लू और नेवी ब्लू खास हैं। लड़कियां को लिए भी बाजार में लाइट शेड के रेनकोट मौजूद है। बाइक चलाने के लिए लडक़ो के लिए डार्क शेड हैवी फैब्रिक रेनकोट उपलब्ध है। अगर आप बिल्कुल यूनीक रेनकोट चाहते हैं, तो ट्रांसपेेरेंट रेनकोट ले सकते हैं। इनमें आपकी ड्रेस भी नजर आएगी। यानी कि आप पानी में भीगेंगे भी नहीं और अपना टशन भी जमा सकेंगे। इस रेनकोट की कीमत 600 रुपये से शुरू है।
डिजाइनर छाता : मानसून सीजन में मार्केट में छातों की बहार जाती है। यही वजह है कि आपको तमाम कलर , साइज पैटर्न के में अंब्रेला मिल जाएंगी। वैसे लड़कियां ज्यादातर कलर को ध्यान में रखकर अंब्रेला खरीदती हैं , लेकिन अगर आप डिफरेंट अंब्रेला तलाश कर रहे हैं, तो ट्रांसपेरेंट अंब्रेला अच्छा ऑप्शन है। दरअसल, बाजार में प्लास्टिक और फैब्रिक को कंबाइन करके अंब्रेला डिजाइन किया गया है, जो बेहद खूबसूरत है। इसमें कई तरह के डिजाइन मिल जाएंगे। वैसे बाजार में फोल्ड बेस के छाता भी मौजूद है। इनमें वन फोल्डर , टू फोल्डर थ्री फोल्डर अंब्रेला की वैरायटी मौजूद है। अगर आप चाहते हैं कि अंब्रेला बैग में कैरी करें, तो आप थ्री फोल्डर अंब्रेला ले सकते हैं। वहीं, आपके लिए कंफर्ट से ज्यादा स्टाइल मैटर करता है , तो आप वन फोल्डर अंब्रेला ले सकते हैं। वन फोल्डर अंब्रेला में एनिमेटेड प्रिंट्स डिजिटल प्रिंट्स के अंब्रेला ज्यादा ट्रेंड में हैं।
आप अगर सिंपल अंब्रेला लेना चाहते हैं, तो वह आपको 80 रुपये से 150 रुपये तक में मिल जाएंगी। इसमें प्लेन चेक्स की अंब्रेला खास है। वहीं , डबल फोल्ड फ्लावर प्रिंट्स की अंब्रेला की कीमत 150 रुपये से 250 रुपये के बीच है। इनमें आप डबल शेड्स की अंब्रेला ले सकते हैं। इसके अलावा बाजार में चाइनीज छाते भी मौजूद है, जिसकी कीमत 200 रुपये से शुरू होती है। मल्टी कलर की अंब्रेला भी इस मौसम के लिए बेस्ट है। इसमें आपको मल्टी कलर्ड थ्री कलर में अंब्रेला 250 रुपये तक में मिल जाएंगी। ट्रांसपेरेंट छातों की कीमता 300 से शुरू है। साटन फैब्रिक के छाते 350 रुपये से शुरू है। बाजार में राउंड शेप्ड के अलावा फ्लावर कट, स्कावयर कट और ट्रायएंगल कट में अंब्रेला मौजूद है। इनकी कीमत 400 रुपये से शुरू हैं। यही नहीं , युवतियां अपने को स्टाइलिस लुक देने के लिए डिफरेंट स्टाइल की अंब्रेला भी इन दिनों खूब खरीद रही हैं। दरअसल, यह अंब्रेला ऊपर से प्लेन अंदर से प्रिंटेड हैं। यानी अंब्रेला के अंदर बने डिजाइन का आनंद सिर्फ आप ही ले सकते हैं।
फैंसी फुटवियर्स : बारिश में लड़कियों को सबसे ज्यादा डर स्लीपर्स के टूटने का होता है। एेसे में कॉलेज गोइंग गल्र्स बारिश को ध्यान में रखकर फुटवियर्स की खरीदारी कर रही हैं। इन दिनों प्लास्टिक से बने स्लीपर्स स्लीप खूब मिल रहे हैं। इनकी खूबी है कि ये गीली होने के बावजूद भी टूटेंगी नहीं। इनकी कीमत 100 रुपये से शुरू है। ये स्लीपर्स आपको हर कलर में मिल जाएंगी। युवतियों के बीच डिजाइनदार स्लीपर्स की भी मांग खूब है।
------मो. शाहनवाज